Friday, March 20, 2009

इन्तजार

उनके इन्तजार में था कुछ ऐसा नशा की उनके इन्तजार ने पानी को भी शराब बना दिया,
मुझ जैसे नाचीज़ को शब्दों से खेलने वाला एक शायर बना दिया.
उनको पाने की चाहत मेरे शब्दों में झलकती है
घंटो बैठा रहता हूँ उनकी यादों में न एक बार भी मेरी आँख झपकती है
यह इन्तजार भी क्या चीज है, जो मिलने की चाह बढाती है,
कभी लगती है बड़ी मीठी, कभी बहुत सताती है,
कभी एक लम्हा सदियों सा लगता है
तो कभी पूरी रात एक पल में गुजर जाती है,
हर धड़कन मेरे सिने की उनके होने का एहसास दिलाती है,
उनके आने की आहट भी पानी के गिलास को मयखाने
का जाम बनाती है