अनजान सी सुबह थी, अनजान वो समां था,
अनजान था वो जूनून, अनजान वो लम्हा था,
अनजान सी आवाज ने अनजान सी चाह दिल में जगाई,
अनजान जो आवाज थी, ना थी अब वो पराई,
उस अनजाने से एहसास ने जीना हमें सिखा दिया
अनजान थे हम ख़ुद से अब तक, आज हमसे हमें मिला दिया,
अनजान राह जो हमने चुनी थी, ना अब वो अनजान थी,
हर चौक की, हर मोड़ की अब हमको पहचान थी,
हर अनजान खुशबु उस राह की, अब हमारी जान थी,
अनजान हो गए हम दुनिया से, हम्मारी दुनिया अब बाकी दुनिया से अनजान थी,
कब पहर बीते, कब मौसम बदलें, हमारी जिंदगी इससे अनजान थी,
खोय है थे हम उस दुनिया में, जो हमारा ख्वाब थी,
अनजाने से हमारे अपनों ने उस अनजान ख्वाब से हमें जगा दिया,
पर उस अनजाने से ख्वाब ने जीना हमें सिखा दिया
8 comments:
beautiful work deary!
very very deep thought provoking and applied to all words!
achchhi kavita hai....achchaa likhati hai aap...
anjaan very beautifull poem
and thanx for visiting and ur comment on my blog
Thanks Pulkit, Franklin and Abhishek for appreciation
हिन्दी भाषा को प्रोत्साहित करने के लिए सर्वश्रेष्ठ कार्य
A student of economics & such poetry... deadly combination dear
simply speachless...u r very talented...great going...-Kulbhushan
wow....what a thought. loved reading thru!
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